मास्टर जी का लड़का कैसे बना सैक्स रैकेट का मास्टर माईण्ड
बिलासपुर। मंगलवार को बिलासपुर पुलिस ने शहर में चल रहे एक बड़े सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ किया। तीन जगहों पर छापा मारकर 5 महिलाओं समेत 21 लोगों को गिरफ़्तार किया गया। इसके अलावा इस रैकेट के चंगुल में फंसी 7 लड़कियों को रेस्क्यू भी किया गया है। शहर में तीन मकानों में ये लोग ग्राहकों को बुलवाते थे। इनमें दो किराए के घर थे और एक घर था मास्टर माईण्ड रुख़्सार अहमद उर्फ़ जावेद का। कस्टमर्स की डिमाण्ड पर शहर के होटलों में भी सप्लाई की जाती थी। एक कार भी पुलिस ने ज़ब्त की है जिससे लड़कियों को भेजा और वापस लाया जाता था। ये रैकेट पिछले 4 सालों से भी ज़्यादा समय से शहर में एक्टिव था। इस रैकेट को चला रहा था रुखसार अहमद उर्फ़ जावेद।
कौन है ये जावेद
आला अधिकारीयों से संपर्क बनाए रखते हुए इस पूरी कार्रवाई को अंजाम देने वाले आईपीएस उमेश गुप्ता ने बताया कि इस रैकेट का संचालक जावेद उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद ज़िले का रहने वाला है। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि जावेद के मरहूम पिता उत्तर प्रदेश में मास्टर थे बच्चों को पढ़ते और बेहतर इन्सान बनने की तालीम देते थे पर किसने सोचा था कि मास्टर जी का लड़का ऐसे कामों में शामिल हो जाएगा। तकरीबन 6 साल पहले जावेद जब उत्तर प्रदेश से बिलासपुर आया तब जगह जगह पर रेड़ी लगाकर कपडे बेचा करता था। शुरुआत में ये बतौर कस्टमर दलालों से संपर्क करता था। फिर इसने खुद दलाल बनकर देह व्यापर को अपना पेशा बना लिया। चूंकि ये कपडे का काम करता था इसलिए दुसरे प्रदेश के लोगों से भी इसका संपर्क था। धीरे धीरे इसने दुसरे राज्य के ब्रोकरों के संपर्क करना शुरू किया। दूसरे राज्यों से लड़कियां बुलवाकर अपने घर में ही ठहराया करता था। ग्राहक खोजने और डिलीवरी करने के लिए इसने कुछ लोगों को अपने साथ जोड़ा जिनमें ज़्यादातर महिलाएं थीं। इस रैकेट का मास्टर माईण्ड जावेद अपनी पत्नी के साथ सकरी क्षेत्र की गोकुल धाम कॉलोनी में रहता था। पत्नी को पसंद नहीं था कि जावेद ऐसे कामों में सलिप्त रहे इसी बात को लेकर दोनों के बीच झगड़े होने लगे। साल 2022 में पत्नी ने जावेद को छोड़ दिया।
पार्टी कर रहे थे ब्रोकर
पुलिस ने बताया कि उन्हें कुछ दिनों से इस रैकेट के संचालन की जानकारी मिल रही थी लेकिन स्थान की सटीक जानकारी नहीं हो पाने के कारण कार्रवाई करने में थोड़ा समय लगा। जैसे ही जगह का पता चला तो तुरंत कार्रवाई की गई। गोकुल धाम वाले लोकेशन पर जब पुलिस ने छापा मारा तो इत्तेफ़ाक़ से सारे ब्रोकर वहां पार्टी कर रहे थे। सब एकसाथ पकड़ में आ गए। कड़ाई से पूछताछ हुई तो उन्होंने बाकी ठिकानों की भी जानकारी दे दी।
एक घण्टे के 2000 पूरी रात के 6000
जाँच अधिकारीयों ने बताया कि ये कस्टमर्स को 2 हज़ार से लेकर 6 हज़ार रुपयों तक चार्ज करते थे। जिसने एक दो घंटे की बुकिंग की उससे 2 हज़ार और जिसने पूरी रात की बुकिंग की उससे 6 हज़ार रुपए चार्ज किए जाते थे। हर बुकिंग पर ब्रोकर को 500 रूपए मिलते थे बाकि पैसे लड़कियों के हिस्से में आते थे। रेस्क्यू की गई लड़कियों में ज़्यादातर कलकत्ता पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं। कुछ लड़कियां ट्रेन से बिलासपुर मंगवाई जाती थीं और कुछ हाई डिमाण्ड लड़कियां फ़्लाइट से यहाँ आती थीं। ये रैकेट सिर्फ़ बिलासपुर और आसपास के इलाकों में ही सप्लाई करता था।
एक महिला ब्रोकर भी थी साथ
रेखा कुर्रे नाम की एक महिला भी इस रैकेट में ब्रोकर बनकर काम कर रही थी। पुलिस ने बताया कि उसकी कहानी भी जावेद्द की ही तरह है। पति से उसका तलाक हो जाने के बाद वो देह व्यापार करने लगी और फिर खुद ब्रोकर बन गई।
ग़रीबी ने ल़डकियों को इस दलदल में खींच लिया
रैकेट में फंसी जिन सात लड़कियों को बचाकर पुलिस ने वहां से निकाला उनसे पूछताछ करने वाले आईपीएस उमेश गुप्ता ने बताया कि तकरीबन सभी लड़कियों का कहना था कि ग़रीबी और आर्थिक तंगी के चलते उन्हें मजबूरन इस पेशे में आना पड़ा। हर किसी की शुरू में कुछ न कुछ मजबूरी रही।
एक्सीडेंट में एक लड़की के पिता ख़त्म हो गए। एक लड़की की कम उम्र में शादी करवा दी गई थी बाद में उसे पति ने छोड़ दिया। एक ने बताया कि उसके 5 भाई बहन हैं पिता पहले ही गुज़र गए थे और कोरोना में माँ भी चल बसी घर में कमाने वाला कोई नहीं था छोटे भाई बहनो को पलने उसे इस दलदल में उतरना पड़ा। मजबूरी के चलते एक बार जो लड़की इस दलदल में उतर जारी है उसे ये रैकेट वाले दलाल वापस नहीं जाने देते और हमारा तथाकथित सभ्य समाज भी इन्हें सिर्फ नोचना ही चाहता है बचाना नहीं।
पुनर्वास योजनाओं की है कमी
आईपीएस उमेश गुप्ता ने बताया कि जिन सात लड़कियों को रेस्क्यू किया गया है उन सभी के परिवार को सूचना दे दी गई है वे आकर उन्हें साथ ले जाएंगे। जिन्हें कोई लेने नहीं आएगा उनके लिए किसी संस्था या एनजीओ के माध्यम से रहने और कोई हुनर सिखा कर उनकी सहायता करने की कोशिश की जाएगी। हालाँकि पुलिस की अपनी सीमाएं हैं लेकिन फिर भी जितना हो सकेगा पुलिस इस दिशा में कोशिश करेगी।
दरअसल पूरे प्रदेश में महिलाओं और बच्चियों के लिए चल रहे पुनर्वास केंद्रों का बुरा हाल है। पुनर्वास के लिए सरकारी योजनाएं तो हैं लेकिन धरातल पर उनका स्वरुप डरावना है। छत्तीसगढ़ में ऐसे किस्से भरे पड़े हैं।
ऐसे मामलों में रेस्क्यू की गई लड़कियों का आगे का जीवन आसान नहीं होता है। ऐसे समय में जब लड़कियों को मदद और सहानुभूति की जरूरत होती है तब हमारा समाज उन्हें ही अपराधी की नजर से देखता है।
बिलासपुर शहर में ही ऐसा एक मामला मेरी जानकारी में है जब वैश्यावृत्ति के दलदल से निकली एक लड़की समाज और पुलिस के तानों से तंग आकर वापस उस दलदल में चली गई।
सम्वेदनशीलता की भयानक कमी से ग्रसित पुलिस विभाग में आईपीएस उमेश गुप्ता जैसे अधिकारियों की सम्वेदनशीलता अच्छे बदलाव की तरफ़ इशारा करते हुए एक उम्मीद भी जगाती है।
इस कार्रवाई की जानकारी देते हुए पुलिस विभाग ने मीडिया के माध्यम से आम जनता से यह भी अपील की है कि ऐसे किसी भी रैकेट के बारे में लोगों को कोई भी जानकारी मिले तो वे पुलिस को जरुर सूचना दें ताकि ज्यादा से ज्यादा अपराधियों को पकड़ा जाए और अधिक से अधिक महिलाओं की मदद की जा सके।